भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (7 अगस्त 2013) चेन्नै के कलाक्षेत्र फाउंडेशन में प्रथम रुकमिणी देवी स्मृति व्याख्यान दिया।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने श्रीमती रुकमिणी देवी को भारत की एक ऐसी महान हस्ती बताया जो महात्मा गांधी के समान त्याग के जज्बे की प्रतिमूर्ति थी। यदि वह 1977 में राष्ट्रपति बनने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती तो वह सर्वसम्मति से चुनी जाती। इस प्रस्ताव को अस्वीकार करने से न केवल उनकी महानता तथा विचक्षणता का, बल्कि उनके व्यक्तित्व का भी पता चलता है। वह उन मूल्यों का एक शानदार उदाहरण थी, जिन्हें भारत ने सदियों से संजोया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि चेन्नै के लिए कलाक्षेत्र का वही स्थान है जो कोलकाता के लिए शांतिनिकेतन का है, वे शांति के घर हैं, कला के मंदिर हैं, और मानवता के प्रकाशस्तंभ हैं। उनकी स्थापना एकांतवास के लिए नहीं वरन् कलाओं की रक्षा तथा उनके विकास के लिए यह अनुकूल वातावरण प्रदान करने के लिए की गई थी। यहां रक्षा का तात्पर्य है जीवन के तीव्र चक्र से क्षण भर विराम। सर्जनात्मकता को, खामोशी के साथ-साथ, प्रकृति की उफनती सर्जनात्मक क्षमता के स्रोत से जुड़ने का अवसर, दोनों की ही जरूरत होती है और ये दोनों ही विशेषताएं शांति निकेतन और कलाक्षेत्र दोनों के मूल में है। प्रदर्शन कलाएं विश्वभर में प्रकृति के संसाधनों के क्षय तथा मौसमों के हस से अछूती नहीं रह सकती।
राष्ट्रपति ने कहा कि रुकमिणी देवी उन कदमों की परिकल्पना के प्रति संवेदनशील थीं जिन्हें उन्हें और उनकी पीढ़ी के अन्य लोगों को, हमारी प्राचीन संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए और उन्हें हमारे देश में जीवंत परंपरा बनाने के लिए उठाना था। आज हमारे सामने, उनको तथा यथासंभव बेहतर तरीके से उनके निरंतर विकास को बनाए रखने का कार्य है जिसमें कलाक्षेत्र जैसी संस्थाएं, इस महत्वपूर्ण सामाजिक दायित्व के निर्वाह में मजबूत आधार प्रदान करेंगी।
इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने कलाक्षेत्र फाउंडेशन द्वारा आयोजित नृत्य नाटिका सीता स्वयंवरम्-का भी अवलोकन किया
यह विज्ञप्ति 1750 बजे जारी की गई।