राष्ट्रपति भवन 21 से23 नवम्बर तक भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के सहयोग से प्रथम बार विश्व भारतविद्या सम्मेलन आयोजित करेगा। यह अपने प्रकार का एक प्रथम आयोजन होगा,जिनमें पूरे विश्व के लगभग 21 सुप्रसिद्ध भारतविद् (जिसमें राष्ट्रपति भवन का प्रतिष्ठित अतिथि स्कंध जो सामान्यत: विदेशी नेताओं के आतिथ्य का आयोजन करता है,भी शामिल है) और भारतीय संस्कृति और दर्शनशास्त्र से संबद्ध विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श करने वाले भारत के आठ वरिष्ठ विद्वान राष्ट्रपति भवन में रहेंगे।
राष्ट्रपति द्वारा इस अवसर पर जर्मनी के प्रो. हेनरिच फ्रीहर वोन स्टीटेनक्रोन को‘विशिष्ट भारतविद्’पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा इस प्रकार का पुरस्कार प्रथम बार आरंभ किया गया है।
राष्ट्रपति भवन द्वारा इस प्रकार के सम्मेलन को आयोजित करने का विचार श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा7 से 11मई, 2015 तक उनकी रूस यात्रा के दौरान पैदा हुआ। मास्को में अग्रणी भारतविदों के साथ बैठक के बाद राष्ट्रपति ने घोषणा की कि उन्हें राष्ट्रपति भवन में भारतविद्या पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने में खुशी होगी और उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद को इस संबंध में आवश्यकतानुसार कार्रवाई करने के निदेश दिए।
विश्व भारतविद्या सम्मेलन 21 नवम्बर, 2015को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के उद्घाटन भाषण से आरंभ होगा। विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष,प्रो. लोकेश चन्द्र भी इस कार्यक्रम में भाग लेंगे।
सम्मेलन के पांच शैक्षिक सत्र विचारपूर्वक निर्धारित किए गए हैं जिसमें प्राच्य और पाश्चात्य दृष्टिकोणों को उनके चर्चा किए जाने वाले विषयों के संबंध में समान स्थान दिया गया है। तीन दिवसीय इस सम्मेलन में‘ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में भारतविद्या अध्ययन’, ‘संस्कृत साहित्य—अतीत और वर्तमान’, ‘संस्कृत नाटक-सिद्धांत और व्यवहार’, ‘भारतीय दार्शनिक विचार’और ‘भारतीय कला और वास्तुशिल्प’जैसे शीर्षकों पर बृहत्त विचार-विमर्श होगा। सत्र के प्रथम दिन विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष सत्रों की अध्यक्षता करेंगे।
यह सम्मेलन एक अपूर्व मंच होगा जिसमें भारतविद्या की वर्तमान स्थिति,इसकी प्रासंगिकता तथा भारत और विदेशों में सम्मुख संबंधित चुनौतियों पर भी विचारार्थ भारत सहित विश्व के सर्वोत्तम विद्वान उपस्थित होंगे। सम्मेलन के दौरान विचार-विमर्श से अध्ययन के एक विषय के रूप में भारतविद्या को चुनने के लिए युवा वर्ग में एक नया जोश पैदा करने की दिशा में अनुसंधानकर्ताओं के लिए नए मार्ग प्रशस्त होंगे।
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद ने विदेश में कार्यरत उन श्रेष्ठ भारतविदों की पहचान हेतु वार्षिक रूप से‘आईसीसीआर विशिष्ट भारतविद् पुरस्कार’का आरंभ किया है जिन्होंने भारत के दर्शन-शास्त्र,विचार, इतिहास,कला, संस्कृति,भारतीय भाषाओं, साहित्य,सभ्यता, समाज आदि में अध्ययन/शिक्षण/अनुसंधान में उत्कृष्ट योगदान दिया है। इस पुरस्कार में20000 अमरीकी डॉलर और एक प्रशस्तिपत्र शामिल है।
इस वर्ष ‘विशिष्ट भारतविद्’पुरस्कार विजेता ने 1973-1998 तक लगभग 25 वर्ष ट्यूबिनगेन विश्वविद्यालय में भारतविद्या और धर्मों के तुलनात्मक इतिहास विभाग के निदेशक के रूप में कार्य किया है। उन्हें एक विख्यात अनुसंधानकर्ता,शिक्षक, अकादमी सदस्य और पुरालेखी के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भारतीय धर्मों,विशेषकर हिन्दुत्व इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर कार्य किया है और महाकाव्यों और पुराणों पर अनुसंधान कार्य किया है। प्रो. स्टीटेनक्रोन उड़ीसा परियोजना के संस्थापक सदस्यों में से भी एक हैं,जो उड़ीसा में जगन्नाथ संप्रदाय के इतिहास और सामाजिक-सांस्कृतिक महत्त्व पर केंद्रित है। उन्होंने19 पुस्तकों और लगभग 90वैज्ञानिक अनुसंधान दस्तावेज प्रकाशित किए हैं। भारतविद्या में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए, 2004में उन्हें भारत सरकार की ओर से पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
इस सम्मेलन में भाग लेने वाले अन्य अंतरराष्ट्रीय विद्वानों में अर्जेनटीना के फरनांदो तोला,ब्राजील के प्रो. ओस्कार पुंजोल रेम्बाउ,चिली के सेरजियो मेलिटन कारास्को अल्वारेज़,चेक रिपब्लिक के डॉ. जारोस्लाव वैसेक,डेनमार्क के डॉ. केनेथ ग्रीगोरी ज़िस्क,इंडोनेशिया प्रो. आई. वायन आरडिका,नार्वे के प्रो. क्लॉज़ पीटर ज़ोलर,पोलैंड के प्रो. दनुटा स्टैसिक, रोमानिया के डॉ. जॉर्ज आंका, स्पेन के प्रो. ज़ावेर रुईज़ काल्डरन,श्रीलंका के प्रो. वेन इन्दुरेगेयर धम्मारतना,तुर्की के प्रो. डॉ. कोरहान काया,इटली के इर्मा पिवानो, चीन के प्रो. वांग बानवे,प्रो. मा जियाली और प्रो. यू, कनाडा के प्रो. नरेंद्र के वागले, बंगलादेश के प्रो. अनिसुज़माम, रूस के प्रो. मेरियट्टा स्टेपनयांट्स,मॉरीशस के प्रो. राजेंद्र अरुण और संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रो. डेविड फ्रेवले होंगे।
सम्मेलन का समापन भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के भूतपूर्व अध्यक्ष,डॉ. करण सिंह के उपनिषदों पर विशेष व्याख्यान के साथ सम्पन्न होगा।
भागीदार 24 और25 नवम्बर, 2015को उत्तराखंड में देव संस्कृति विश्वविद्यालय का दौरा करेंगे,हरकी पौड़ी पर गंगा आरती देखेंगे और शांति कुंज का भी दौरा करेंगे।
यह विज्ञप्ति 1720बजे जारी की गई।