भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मंडी के द्वितीय दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण उनकी अनुपस्थिति में आज (15 मार्च, 2015) श्री एम. नटराजन, अध्यक्ष, शासी मंडल द्वारा पढ़ा गया। राष्ट्रपति खराब मौसम के कारण चण्डीगढ़ से मंडी नहीं पहुंच पाए थे।
राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में कहा कि भारत के तकनीकी संस्थानों को हमारे उदीयमान इंजीनियरों और वैज्ञानिकों में सामाजिक जागरूकता का समावेश करना होगा। वैज्ञानिक ज्ञान के इन केंद्रों को पेशेवराना क्षमता के साथ ही विद्यार्थियों में सामाजिक अभिमुखीकरण का भी समावेश करना होगा। हमारे उच्च शिक्षा संस्थान स्थानीय परिवेश के अभिन्न अंग हैं। उन्हें समग्र विकास के लिए और अधिक उत्तरदायित्व लेना होगा। सरकार ने भारतीय वित्तीय समावेशन, मॉडल गांवों के निर्माण, स्वच्छ भारत तथा डिजिटल अवसंरचना के सृजन के उद्देश्य से महत्त्वपूर्ण पहले शुरू की हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मंडी सहित हर-एक उच्च शिक्षा संस्थान को पांच गांवों को अपनाकर उन्हें सांसद आदर्श ग्राम योजना की तर्ज पर मॉडल गांवों में बदलना चाहिए। उन्होंने ‘डिजिटल भारत’ कार्यक्रम के लक्ष्यों की प्राप्ति में भी उनसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का आग्रह किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि इंजीनियरी शिक्षा की बढ़ती मांग के परिणामस्वरूप बहुत से तकनीकी संस्थान स्थापित हुए हैं। परंतु इस प्रसार अभियान में शिक्षा की गुणवत्ता तथा भौतिक अवसंरचना पर कम ध्यान दिया जा रहा है। हमारे उच्च शिक्षा सेक्टर को सशक्त करने के लिए हमारे संस्थानों को अधिक गतिशीलता की जरूरत है। उन्हें ऐसे एक-दो विभागों को चुनना चाहिए जिनमें उनको मौलिक विशेषज्ञता हासिल हो और उन्हें उत्कृष्टता के केंद्रों के रूप में विकसित करना चाहिए। संकाय सदस्यों का स्तर उच्च होना चाहिए जिससे विद्यार्थियों को विश्व स्तरीय शिक्षा प्रदान की जा सके। विभिन्न विषयों में तेजी से आ रहे बदलावों के चलते संकाय को नवीनतम् प्रगति से खुद को अद्यतन रखना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता में बदलाव लाने के लिए नव-स्थापित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को पुराने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में मौजूद विशेषज्ञता का लाभ उठाना चाहिए। राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क शैक्षणिक संस्थानों को एक ऐसा नेटवर्क उपलब्ध कराता है जिससे वे नए क्षेत्रों में समान-समूह अध्ययन के माध्यम से सहयोग कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त इस नेटवर्क से संकाय, अवसंरचना तथा संसाधनों की कमी से भी निपटा जा सकता है। हमारे शिक्षा संस्थानों को अंतरराष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों के साथ संयोजन विकसित करने के भी प्रयास करने चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि ज्ञान और नवान्वेषण प्रगति के आधारस्तंभ हैं। नवीन ज्ञान, अनुसंधान तथा नवान्वेषण के लिए उपयुक्त परिवेश से प्रतिस्पर्धात्मक फायदा भी उठाया जा सकता है। पाठ्यचर्या तथा अनुसंधान में अंतरविधात्मक नजरिया, उपाधि स्तरीय अनुसंधान को सुदृढ़ करने तथा अनुसंधान को पठन-पाठन प्रक्रिया का अभिन्न अंग बनाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। उद्योग के साथ मजबूत संयोजन बनाये जाने चाहिए। ‘भारत में निर्माण’ कार्यक्रम जैसी पहलों की सफलता स्तरीय औद्योगिक उत्पादों के विनिर्माण पर निर्भर है। इस दिशा में बेहतर संकाय-उद्योग संपर्क महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि उच्च शिक्षा संस्थानों, खासकर इंजीनियरी संस्थानों को विद्यार्थियों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति तथा पूछताछ की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। उन्हें विद्यार्थियों को अपनी उत्सुकता का समाधान ढूंढ़ने तथा अपनी रचनात्मकता की खोज करने के लिए बढ़ावा देना चाहिए। उन्हें विद्यार्थियों को पाठ्य पुस्तक से आगे सोचने और नवीन विचारों के साथ आगे आने के लिए तैयार करना चाहिए।
यह विज्ञप्ति 1430 बजे जारी की गई।